बैठ कर ज़ख़्म ही गिना कीजे ‘
हालत ऐ हिज्र है तो क्या कीजे
बैठ कर ज़ख़्म ही गिना कीजे ‘
आग तो ख़ैर क्या बुझेगी अब
आप तो बस इसे हवा कीजे ‘
जब ज़ुबाँ है तो खोलिये इसको
ऐसे खामोश मत रहा कीजे ‘
इश्क़ हो और उस तरफ भी हो
इक तरफ हो तो कोई क्या कीजे
कैसे कैसे कलाम पढ़ते हो
दो भी मिसरों में कुछ कहा कीजे
है मज़ा रूठने मनाने मैं
मुस्तकिल उससे क्यूँ वफा कीजे
दोस्ती खूब किजिये सबसे
दुशमनी का भी हक़ अदा कीजे
चारागर ने कहा है अबकी बार
अपने हक़ मेें फकत दुआ कीजे
– नासिर राव