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16 Feb 2024 · 3 min read

बैंकर

कोर्ट के आहते में काफी देर से खड़ा था,
डिपोजिट में हिस्सा मिलेगा या नहीं, उधेड़बुन में पड़ा था.

बहुमुखी सेवा के कारण बैंकर होना खल रहा था,
अपने बैंकिंग जीवन पर चिंतन चल रहा था.

कभी बैंक में बैठ ब्याज आदि का गणन करना,
कभी बड़े बड़े तुलन पत्रों का अध्ययन करना.

कभी डिपोजिट अग्रिम के लिए भटकना दर दर,
उपयोग करना ‘एक्सटेंशन स्किल’ का उच्च स्तर.

कभी बड़े बड़े प्रोजेक्ट्स का अध्ययन एवं लागू करवाया जाना,
अपने को बड़े बड़े इंजीनियर्स के समकक्ष पाना.

सम्पूर्ण सम्प्रेषण के लिए माहौल बनाने का ध्यान,
जिस के लिए रखना पड़ता है ग्राहक की मनोस्थिति का ज्ञान.

विपरीत परिस्थितियों में करना व्यवसाय अच्छा भला,
सफल विक्रेता की सी विपणन कला.

कभी सरकारी विभागों एवं कोर्ट के चक्कर,
व्यवसाय वर्धन के लिए बराबर के बैंकरों से टक्कर.

तभी एक सज्जन हाथ लगा कर कंधे पर,
बोले प्रणाम जनाब ! शायद आप हैं बैंकर ?

हैरानी से मैंने उनको देखा,
चेहरे पर उभरी चितन रेखा.

लेकिन मन में हर्ष की लहर कि बहुमुखी ‘सेवा’ कितनी महान है,
हम जहां भी जाएँ हमारी पहचान है.

लेकिन विचारों को कुछ इस प्रकार प्रकट किया,
शायद आप किसी को ढूंढ रहे हैं भैया ?

मुझे नहीं आती याद हमारी कोई मुलाकात,
या कभी निकट भूत में हुई बात.

सर ! हमारी पहले कभी मुलाकात नहीं हुई मानता हूँ,
यह दावा भी नहीं कि मैं आपको पहले से जानता हूँ.

मैं तो दलाली का काम करता हूँ,
रोजी कमाने के लिए दर दर भटकता फिरता हूँ.

लेकिन जहाँ कहीं भी जाता हूँ,
आप जैसे सज्जनों को भी वहां पाता हूँ.

कि आप बैंकर हैं, छानबीन पर जान पाया,
अपने को आप के समकक्ष पा कर बहुत हर्षाया.

मैं दलाल के काम को हीन समझता था,
अपना धंधा बताने में भी हिचकता था.

आप का काम के प्रति समर्पण भाव मुझे बहुत भाया है,
इसने कर्म में मेरे विश्वास को बढ़ाया है.

लेकिन आजकल तो अकर्मण्यता का ही राज है,
न काम करने में ही अपने आप पर नाज है.

कभी पद की गरिमा का नाम,
जहाँ पहुँच उचित नहीं करना काम.

कभी नीचे स्तर का कार्य,
जिसे करना नीचे वालों के लिए है अनिवार्य.

ढूंढते हैं हर वक्त औचित्य निट्ठलेपन का,
शायद यही है वास्तविक कारण पतन का.

कर्म को बिलकुल छोड़ दिया है,
मन को निक्कमेपन की ओर मोड़ लिया है.

हर क्रिया कलाप में दोगलापन,
हर वक्त दूसरों को धोखा देने की उधेड़बुन.

क्या कर्म से इस लिए नाता तोड़ लिया है,
काम करना इस लिए छोड़ दिया है.

कि कर्म करेंगे ही नहीं तो फल कैसा,
प्रयास ही नहीं तो सफल या विफल कैसा.

यह निराशावादी स्थिति, धीमा जहर है,
यह तो मानवता के ऊपर कहर है.

यदि यही है मानवता का विकास,
तो पिछले कुछ समय से है विकसित होने का सतत प्रयास.

आप जैसे सज्जनों को देख मुझे हुआ है ज्ञान,
कि कर्म दर्शन में ही है मानवता की जान.

हमें कर्म से नाता किसी भी हाल में नहीं तोडना है,
इन अकर्मण्यता की बेड़ियों को हर हाल में तोडना है.

काम तो काम है छोटा क्या और बड़ा क्या,
जो मन से हार गया वो आज तक लड़ा क्या ?

अकर्मण्यता मानवता के विनाश का रास्ता है,
जब कि मानवता का विकास ही हमारा वास्ता है.

इस लिए कायरता है कर्म से मुंह मोडना,
शोभा नहीं देता अपने कर्तव्य से दौडना.

मैं खड़ा सोचता रह गया,
इस बीच वो जाने क्या क्या कह गया.

लेकिन बैंकर होना अच्छा है, ज्ञान हुआ,
जो इससे अनुभव मिलता है उस का भान हुआ.

भिन्न भिन्न प्रकार के लोगों से पड़ता है वास्ता,
दूर दूर तक नहीं रहती एक रसता.

हम बैंकर ही ऐसी स्थिति में निभा पाते हैं आराम से,
जब हो वास्ता विभिन्न गुणधर्म के लोगों और काम से.

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