बेहोशी छोडे
कानों में लीड लगी,ढांप कर चले मुँह.
नियति ख्याल किसे,खोपडी चढ़े बूह.
खोपडी चढ़े बूह, कौन किसको गामे,
खुद मतवाले इतने,न सुने न ही शामे,
टोके ये प्रबुद्ध समाज, छोड़ पर आस,
चल ले संभल कर,जबतक आवे श्वास,
.
वैद्य महेन्द्र सिंह हंस
कानों में लीड लगी,ढांप कर चले मुँह.
नियति ख्याल किसे,खोपडी चढ़े बूह.
खोपडी चढ़े बूह, कौन किसको गामे,
खुद मतवाले इतने,न सुने न ही शामे,
टोके ये प्रबुद्ध समाज, छोड़ पर आस,
चल ले संभल कर,जबतक आवे श्वास,
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वैद्य महेन्द्र सिंह हंस