बेहया सच्चाई
व्यंग्य – बेहया सच्चाई
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अरे भाई कब से समझा रहा हूं
तुम्हें गुमराह होने से बचाने के लिए नाक रगड़ रहा हूं
पर तुम तो बड़े बेशर्म हो यार
सच्चाई के बड़े लंबरदार हो सरकार।
अच्छा है मेरी सलाह मत मानो
जब मुंह की खाओगे
तब मुझे याद कर पछताओगे।
तब मैं तुमसे पूछूंगा
क्या मिला सच्चाई का दामन थाम कर
कौन सा भंडार या ऊँची कुर्सी पा गए
सच्चाई का बेसुरा राग गाकर।
अपनी फटेहाल हालत
बाप दादाओं का वही पुराना मकान
खटारा साइकिल, अभावग्रस्त चलती जिंदगी
बच्चों का मन मारने की नियत
बीबी की हर फरमाइश अधूरी
लोगों को छोड़ो, अपनों से भी बढ़ती दूरी
तुम्हें अपना चाचा, ताऊ कहते शर्माते
तुम्हारे ही परिवार के बच्चे
सगे रिश्तेदार भी दूर का बता किनारा कस रहे हैं
तुम्हें तो सब आइना ही दिखा रहे हैं।
पर तुम पर तो भूत सवार है
ईमानदारी और सच्चाई का
सत्यवादी बन हरिश्चंद्र को भी पीछे छोड़ने का।
मेरी शुभकामनाएं तेरे साथ हैं
बस तेरी मेरी यह आखिरी मुलाकात है,
अब नहीं आऊंगा कभी तुमसे से मिलने
और न समझाने
जब तक तू सच्चाई का वटवृक्ष बना रहेगा।
बस अब तो तब ही आऊंगा
जब तू दुनिया से विदा हो जाएगा,
तेरा कफ़न भी मैं ही लाऊंगा
क्योंकि मुझे पता है कि तेरी कमाई से तेरा कफ़न भी
तेरी बीवी नहीं खरीद पायेगी
उसके लिए भी मोहल्ले वालों के आगे हाथ फैलाएगी
तेरी ईमानदारी के किस्से सुनाएगी
तब जाकर कुछ बेवकूफों की सहानुभूति पायेगी
और किसी तेरी लाश भी
जैसे तैसे श्मशान तक पहुंच पायेगी,
तेरी सच्चाई भी तेरे साथ जल जायेगी।
और तू भुला दिया जाएगा
कल कोई यह भी नहीं कहेगा कि
तू इस दुनिया में आया था,
क्योंकि तब यह बेहया सच्चाई
किसी और को बलि का बकरा बनाएगी।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित