बेहद अज़ीब उसका हर ख़याल था
बे-हद अजीब उसका हर ख़याल था
उसके हर जवाब में एक सवाल था।
बड़ी देर तक वो साँस रोक लेता था
घुटन से उसका मर जाना कमाल था।
सूरज के निकलने से पहले मैं निकला
फिर भी गाड़ी की सीट पर रुमाल था।
वो बड़ा अच्छा था मगर दोज़ख़ गया
छिपकर करता कोई बद-आमाल था।
उसको मेरे घर के पते की तलाश थी
इत्तफ़ाक़न मेरा भी तो यहीं सवाल था।
मुनाफ़िक़ों ने जब से पीरों को निकाला
सुना है उस दिन से गाँव में अकाल था।
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’