बेहतर नही तो बुरा ही कह
बेहतर नही तो बुरा ही कह
ज्यादा नही तो जरा ही कह
चुप ना रह ये चुभता है
अन्तर्मन फिर जलता है
दर्मियां हमारे उगा हुआ फासला
फिर किस उम्मीद में दीप जला
ये व्यर्थ जला है तो बुझा ही दे
कोई राह मुझको सुझा ही दे
दे ना मेरी उम्मीद को शह
ज्यादा नही तो ज़रा ही कह
बेहतर नही तो बुरा ही कह।
तुम उस ओर बन जाओ पावन
तुम उस ओर बरसाओ सावन
तुम उस ओर सज़ाओ स्वप्न
तुम उस ओर महकाओ उपवन
मर मिटूँ मिलन की लिये आस मैं
कब तक सहूँ ये सघन प्यास मैं
मैं मिल भी जाऊं तो कैसा हर्ष
खो जाऊं तो क्या है भय
ज्यादा नही तो ज़रा ही कह
बेहतर नही तो बुरा ही कह।
मन क्यू रह रह होता व्यथित
मन क्यूँ रह रह होता चिंतित
मन क्यू तुमको सोचे प्रतिपल
मन क्यू तुमको चाहे प्रतिपल
सघन वर्षा और टूटे किनारे
तुम लगे थे कितने प्यारे
वे स्मृतियां अब करती है कलह
ज्यादा नही तो ज़रा ही कह
बेहतर नही तो बुरा ही कह।
जब जीवन में अवरोध हुआ
तभी सत्यता का बोध हुआ
जब सत्यता का बोध हुआ
सच कहता हूँ अफसोस हुआ
अफसोस की तुमसे आन मिला था
अफसोस की अपना जान मिला था
था यूं ना मिला की महके आंचल
था यूं ना मिला कि बाजे पायल
सुन री पायल है हृदय घायल
वे मौन है तो तू ही कुछ कह
ज्यादा नही तो ज़रा ही कह
बेहतर नही तो बुरा ही कह।
स्वतंत्र ललिता मन्नु