बेसहारा पड़े रहे राहों में
*** बेसहारा पड़े रहे बाहों में ***
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देख कर महबूब पराई बाहों में
गुलाब राह ताकता रहा राहों में
ना जाने कितने मुसाफिर चले गए
किसी ने भी उठाया नहीं राहों में
गुजरी हृदय पर नहीं हाल ए बयां
हाल ए दिल नहीं संभाला राहों में
पीठ पर पीछे से खंजर घोंपते रहे
घायल दिल लिए पड़े रहे राहों में
रसपान यौवन कर जो वो ऊब गए
छोड़ बीच भंवर गए हमें राहों में
नोचता ही रहे जिसे अवसर मिले
सुखविन्द्र बेसहारा पड़े राहों में
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)