बे’सबब करने लगे लोग अदावत हमसे।
दोस्तो,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले,,,,,,,,!!
ग़ज़ल
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बे’सबब करने लगे लोग अदावत हमसे,
कल तक सिखी,जिसने शराफत हमसे।
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कोई खास नही दरख्व़ास्त उनसे हमारी,
वो आज मगर क्यूं करते बगावत हमसे।
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कदम चार हैसियत से कम जरुर थे हम,
दो कदम आगे हुऐ तो,हुऐ आहत हमसे।
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ये कैसी हो गई जलन जमाने को दोस्तो,
आज लगी होने उनको शिक़ायत हमसे।
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शबो-रोज जीते रहे, मौजो की मस्ती मे,
झुके सर ऐसी न हुई कोई शरारत हमसे।
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हर पल हर हाल खामौश रहे सदा “जैदि”,
खुले न जुबां, रखते है लोग चाहत हमसे।
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मायने:-
बे’सबब:- बेवजह
अदावत:-शत्रुता
दरख्व़ास्त:-निवेदन
शराफत:-भद्रता
बगावत:-विद्रोह
आहत:- जख्मी
शबो-रोज:-रात और दिन
शरारत:-पाजीपन (दृष्टता)
चाहत :-इच्छा
शायर:-“जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”