बेशरम हम न होते
सिलसिले गमों के कभी कम न होते
अगर तुम न होते अगर हम न होते
अगर आँसुओं की न बरसात होती
सुलगते हुए मन कभी नम न होते
सिमटते हुए ग़र न नजदीक आते
सहारे न मिलते व हमदम न होते
न होतीं अगर बाग में फूल-कलियाँ
महकते हुये आज मौसम न होते
समझते भला प्यार की अहमियत क्या
दिलों पर हमारे ग़रसितम न होते
बदलता जमाना कभी देखते तो
न मरती मुहब्ब़त सरकलम न होते
अगर लोग करते न रुसवाई ‘संजय’
शरम़ छोड़कर बेशरम हम न होते