बेवफ़ाई
जब तूने मुझे तोड़ा था,
कई महीने जला दिए थे मैंने संभलते- संभलते ।
जिस सच को मेरी आँखों ने देखा था,
बिखर सा गया था दिल उसे अपनाते-अपनाते।
जब तू इस वास्तविकता को लिख रही थी,
दिन गुज़रते थे मेरे एक सपने में मुस्कराते-मुस्कराते।
जिस मूरत पे किसी की आँख तक न उठने दी थी,
हार सा गया था मैं उसे अपने मन से हटाते-हटाते ।
– सिद्धांत शर्मा