बेवफा जिन्दगी
दिनांक 7/4/19
सफर वही
रहते हैं
बदल जाते हैं
मुसाफिर
सड़क के
दोराहे वही
रहते हैं सड़क पर
भटक जाता है आदमी
यहाँ आ कर
ताउम्र प्यार
करता है इन्सान
अपने अपनों से
एक बेवफ़ाई
तोड़ देती है रिश्ते को
कम हो जातीं हैं
तड़प
जब पेट भर जाता है
दौलत की भूख
सताती रहती है
जिन्दगी भर
इन्सान को
कोई पेट भरा होने पर भी
रहता है भूखा ताउम्र
कोई भूखा रह कर भी
बताता नहीं वह
भूखा है
बड़ी बेरहम है
ये जिन्दगी मेरे दोस्त
करो कितनी भी बफाई
आखिर बेवफा हो ही
जाती है ये जिन्दगी
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल