“बेवफा को बेवफा कौन कहेगा”
तेरी दिल्लगी को मुहब्बत कह दूँ
तो बेवफा को बेवफा कौन कहेगा
गम-ए-जुदाई है इश्क़ में सबसे बड़ी सजा
साथ दफना दोगे तो सजा को सजा कौन कहेगा
उसे रूठ जाना तो आता है मनाना नहीं जानती
जान जायें तो अदा को अदा कौन कहेगा
मेरे इख़्तियार में नहीं है उसे भूल जाना
सभी खुदा हो जायें तो खुदा को खुदा कौन कहेगा
उसे नजर भर देख लूँ तो बेचैन रूह को सुकून मिलें
कह दो कि चले आये वो वरना दवा को दवा कौन कहेगा
मेरे दीदार पर लाजमी हैं उसकी नजरों का झुक जाना
ना झुके तो हया को हया कौन कहेगा
महबूब खुदा और इश्क़ इबादत हो गयी हैं
फिर भी इश्क़ गुनाह हैं तो गुनाह को गुनाह कौन कहेगा
कुमार अखिलेश
देहरादून (उत्तराखण्ड)
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