दर्द-ए-बेवफाई
क्यों कुरेदते हो हमें,
क्या दर्द जगाने के लिए?
या फिर वफ़ा दिखा,
उल्फत में फँसाने के लिए।
रिश्तों को शर्मसार कर,
फिर भरमाने के लिए।
दोस्त निकला विश्वासघाती,
ये बताने के लिए?
या फिर विश्वास दिला,
रातों को सताने के लिए।
या अबोध हो तुम,
खयाली पुलाव पकाने के लिए।
पीठ में छुरा भोंक,
पीठ थपथपाने के लिए।
या कलंकित किया यारी,
कलंक हटाने के लिए?
श्रद्धा में विष मिला,
फिर सुलाने के लिए।
टूटे अरमानों के झूले में,
पुनः झुलाने के लिए।
मिलन पल की याद दिला,
दिल को रुलाने के लिए।
या सब तुझे मक्कार कहें,
ऐसा कहलाने के लिए।
सही बन फिर सीने में,
बाण धँसाने के लिए।
या अपना बनाकर,
मधुर विष चखाने के लिए।
छल में एक बार फिर,
हमें छकाने के लिए।
या मानवता मर गयी तेरी,
ये बताने के लिए!
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अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.
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