बेवजह ही कट रही है आदमी की जिंदगी
कुछ सवालों में घिरी है आदमी की जिंदगी।
अब बवालों में फंसी है आदमी की जिंदगी।।(१)
आदमी ही आदमी से कर रहा है अब दगा,
आग नफरत की बनी है आदमी की जिंदगी।।(२)
वक्त पर हैवानियत ने कर लिया कब्जा यहां,
रक्त में ही अब सनी है आदमी की जिंदगी।।(३)
भूख से बेहाल होकर मर रहा है आदमी,
कुछ निवालों में कटी है आदमी की जिंदगी।(४)
भूल कर इंसानियत को वो मिसाइल दागता,
खाक में अब मिल रही है आदमी की जिंदगी।।(५)
क्या कहे तुमसे अटल अब जिंदगी की दास्तां,
बेवजह ही कट रही है आदमी की जिंदगी।।६)