बेवजह यूं ही
बेवजह यूं ही प्यार तुम से हो गया।
एक अदद दिल था ,वो भी खो गया।
रात बातों बातों में जिक्र तेरा जब हुआ
सोचता हूं ये दिल , जाने तेरा कब हुआ।
अपनी आवारगी छोड़ हम दीवाने बने
मत पूछ इस बात पर कितने अफसाने बने।
जिस रोज़ दिन निकलते दीद तेरी हो जाती
इतने खुश हम होते मानो ईद हो जाती।
देख कर तुम्हें दिल की धड़कनें बढ़ गई
बिन पीये ही जैसे बोतल पूरी चढ़ गई।
लिखते लिखते जाने ये कविता कैसे बनी
सोच कर देखा तो खुद की खुद से ठनी।
ऐसे ही अल्फाजों को मैंने बिखरा सा दिया
लोग कहने लगे अरे,काम तूने अच्छा किया
सुरिंदर कौर