बेरोजगार शिक्षक
हम हैं बेरोजगार शिक्षक
सुनो सरकार। -2
कम पैसे में हम थे पढ़ाते
रोज समय पर स्कूल थे जाते ।
अपना कर्तव्य भी खूब निभाते।
न कोई शिकवा थी।
न थी शिकायत।
आधी रोटी खाकर भी हमसब।
देते थे पूरी शिक्षा।
आपके रवैये से,
आज हम मांग रहे हैं भिक्षा।
हम हैं बेरोजगार शिक्षक
सुनो सरकार। -2
विद्यालय बन्द होने से,
बन्द है घर का चुल्हा।
आये कहाँ से अब,
घर में निवाला
हाय इस कोरोना ने,
हमें मार डाला
दर दर की भीख मांगने,
को भी न छोड़ा
न जाने कितनों ने,
प्राण है छोड़ा।
सरकार के खजाने में,
सबके लिए कुछ खास है।
हमारे लिए क्यों नहीं,
कुछ आस है?
देखो तो मेरे घर की
मुनिया उदास है।
गुरु कहकर जग में
हम हैं पूजे जाते।
आज क्यों सब हैं
मुँह फेर फेर जाते।
खुल गया मंदिर,
खुल गया मस्जिद
और खुला है मदिरालय।
हम हैं बेरोजगार शिक्षक
सुनो सरकार। -2
हमारे भी खातिर
कुछ तो करो सरकार।
क्या हम तुम्हारी
जनता नहीं है
क्यों देश में समानता नहीं है।
क्यों है ये बेरोजगारी।
हम हैं बेरोजगार शिक्षक
सुनो सरकार। -2
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पूर्णतः मौलिक व स्वरचित रचना ।