बेरोजगारों का वैलेंटाइन
बेरोजगारों को वैलेंटाइन खुद ही बनाना पड़ता है
गरीबी में खुद ही खुद का साथ निभाना पड़ता है
महंगाई के इस दौर में आटे दाल का भाव बताना पड़ता है
पट जाए कोई लड़की तो रिचार्ज करना पड़ता है
उसको भी घुमाना पड़ता है मूवी भी दिखाना पड़ता है
इससे अच्छा यह लो यह कर्जा ही बचाना ठीक है क्या
इससे अच्छा तो यह खर्चा ही बचाना ठीक है क्या
मन में हो लड्डू फिर भी परहेज बताना पड़ता है
घरवालों पर निर्भर है हम पॉकेट भी बचाना पड़ता है
जिस लक्ष्य पर हम लगे हुए वह फर्ज निभाना पड़ता है
तुम अपनी मां के बेटे हैं हमें घर भी जाना पड़ता है
मां बाप के कामों में हमको हाथ बढ़ाना पड़ता है
कवि दीपक सरल