बेरोजगारी
हिमालय से ऊंचा,
हमने लक्ष्य बनाकर
समुंदर से गहरा,
हमने सोच बनाकर
होगी एक न एक दिन
जीवन में तरक्की
ज्ञान-विद्या का,अर्जित
किये जा रहे हैं।
दूर शहर में कमरे लेकर
रात-दिन पढ़ाई में गुजारे
कोचिंग में जाकर, तैयारी करके
संचालक को मोटी-रकम चुकाते
रोजगार साइट पर आंखे गड़ाकर
वैकेंसी का आवेदन, हम
किये जा रहे हैं।
होगी, एक न एक दिन
जीवन में तरक्की
ज्ञान-विद्या का,अर्जित
किये जा रहे हैं।
साल-भर मेरा धरना-
प्रदर्शन में बीता
तब जाकर आयोग ने
परीक्षा है करवाई
परीक्षा भी हुई, किन्तु
विवादित हुई
शरण-न्यायालय के
वैकेंसी आ पहुंची
माई लॉर्ड भी डेट पर
डेट दिए जा रहे हैं।
होगी, एक न एक दिन
जीवन मे तरक्की
ज्ञान-विद्या का,अर्जित
किये जा रहे हैं।
रोजगार के लिए
लाठी-डण्डे हम खाते
मां-बाप की गाढ़ी
कमाई हम गवाते
बेरोजगारी के झूठे
आंकड़े दिखाकर
नेता टी.वी. में डिबेट
शो हैं चलाते
पार किये उम्र की
हम सारी दहलीजें
आंखों से मोती
गिरे जा रहे हैं।
होगी, एक न एक दिन
जीवन मे तरक्की
ज्ञान-विद्या का,अर्जित
किये जा रहे हैं।
दबकर लोक-लज्जा व
गरीबी के दंश से
कोई घर छोड़ जाता, तो
कोई मृत्यु को गले लगाता
मां-बाप,बच्चों के
कर्ज में हम डूबे
कैसे गृहस्थी का
अपने बोझ संभाले
सत्ता के नशे में
चूर, नेता ए दरिन्दे
देश-भारत को अपने
ठगे जा रहे हैं।
होगी एक न एक दिन
जीवन में तरक्की
ज्ञान-विद्या का,अर्जित
किये जा रहे हैं।
-सुनील कुमार