बेरुखी
नाराज़ है वो,
खता बताते भी नहीं।
है आगोश में,
दूर जाते भी नहीं।।
उनकी खामोशी, मुझे नासूर बन के डसती है।
कोई अनजान सी रस्सी गले को कसती है।।
आइना देख जो, प्यार मुझसे था करता।
वो मेरा अश्क, मेरे किरदार से अब है डरता।।
मेरे गुनाह हैं, जो ख़ुद से खुद को दूर किए।
अजब है द्वंद , अब जिंदगी को कैसे जिएं।।