बेरुखी के पल टहलते जर्द हर अहसास है।
बेरुख़ी के पल टहलते जर्द हर अहसास है।
अब मेरे दिल में न दरिया है न कोई प्यास है।
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किसपे रख दूँ उंगली अपनी दोस्त दुश्मन कौन है।
तेरी इस महफ़िल में हरएक शख्स मेरा खास है।
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सबकी आंखों में छुपी तन्हाइयां है तैरतीं।
सब अकेले हैं यहाँ पर कौन किसके पास है।
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जो भी नाउम्मीद है वह लाश बनकर फिर रहा।
जी रहा है वो ही जिसके दिल में कोई आस है।
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इश्क में अब भी हूँ तेरे मैं मुकर सकता नहीं।
नज़दीक काफी ही हकीकत के तेरा कयास है।
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तू ही कातिल तू ही मुंसिफ तू मेरा जल्लाद है।
पर कोई क्या कर सकेगा ये तेरी इजलास है।
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गर्क है दिन रात मय में किसलिये आखिर ” नज़र”।
जिंदगी से ज्यादा तेरे तू बता क्या खास है।
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कुमारकलहंस