बेरहम आँधियाँ!
क्यों चाहते हो बेरहम आँधियों को मैं ख़ुशगवार हवाएँ कहूँ
ऐसी क्या मजबूरी है जो चाहते हो कोई सवाल ही ना करूँ
जो ज़मींदोज़ हुआ याद करो तुम्हारा भी आशियाँ था कभी
क्यों चाहते हो उन घरौंदा उजाड़ने वालों के मैं क़सीदे पढ़ूँ
कहाँ आसान था तिनके तिनके चुनकर कोई घरौंदा बनाना
खून पसीने में एहसास बहे हैं मेरे इज़हार करने से क्यों डरूँ!
ज़रा बताओ तो सही तुमने कैसे उनका दामन थाम लिया
जिन आँधियों ने इस ज़मीं से हमारा वजूद ही मिटा दिया
जाने क्यों समझ बैठा था इन रगों में ख़ुद्दारी दौड़ती होगी
बात समझ से परे है इतना बेगैरत तुम्हें किसने बना दिया
या तो उन आँधियों ने तुम पे अपना कोई जादू किया होगा
या ख़ुद-तौक़ीरी नहीं जो ग़ारत-गर को सीने से लगा लिया!
तू चाहे अपनी आँख मूँद ले लाख चाहे उन्हें ठंडी हवाएँ कहे
तू चाहे होंठ सी ले या बहकावे में क़सूर किसी और पे धरे
तबाही आँधियाँ लायी हैं हक़ीक़त चाहे कोई झुठलाता रहे
तबाही का मंजर कैसे झुठला दूँ उसे अनदेखा मैं कैसे करूँ
मैं फ़क़ीर नहीं हूँ जो रंज़ न हो मुझे मिले ज़ख़्म मैं कैसे भरूँ
मैं आमी सही मगर अपनी आवाज़ उठाए बिना मैं कैसे मरूँ!