बेरंगी रंग!
बेरंगी रंग!
(On female Child foeticide)
सहसा ही नहीं
परंतु जब मन पटल पर किसी ने रंगों को नहीं
बल्कि स्याही गिराकर
हौसलों की नींव को खोखला कर डाला
विचारों की अनुकृति,
जो हुआ करती थी निश्चल
उसे किया विचाराधीन और
मानवीय सोच को बनने को,
जो नहीं थी सोचने योग्य
लहलहाइ रंगीन हरीतिमा को
नील गगन में विस्तृत होने के पहले
दिखा दी वह काली घटाएं
ना दिया खुशियां पनपने का आईना
यह तो कदम भर भी रखने को हो न सकी उत्तीर्ण।
चिराग जो एक छोटे तिनके को बोकर
बीज बो तो सकती थी
परंतु बोने के पहले पखेरू मिटाए
वापस उसी खौल में जहां,
तरकस था भरा स्वर्ण सी आभा सा सुंदर
व विभाएं खो बैठी थी अपने रंग
झेल कर कुछ,
बेरंगी रंग।
~डाॅ. चन्दन ~