बेबुनियादे इश्क़”
“बेबुनियादे इश्क़”
तुम क्या हो मेरे लिए यह में बता नही सकता
महसूस तो कर सकता हूं, पर दिखा नहीं सकता ।
तुम उस दीप की तरह हो जिसमें अक्सर कुछ कीट जल जाते हैं
शायद मैं वही कीट हूं ,पर जल नहीं सकता ।
तुम वो दिन हो जो रात को खा जाती हैं
हां ,मुझे सुबह पसंद है लेकिन मैं खुद को खो नहीं सकता ।
तुम ठहरे जाने वाला वक्त हो जो पल केद कर लेती है,
गुनहगार तो हूं मैं पर कैदी हो नहीं सकता ।
“तुम” तुम हो, “मैं” मैं हूं ,
कितनी भी जोड़ लो मात्रा पर “हम” हो नहीं सकता ।
मैं सुनता हूं गाने, तुम्हें गाने गाना पसंद है
तुम लाख कर लो जतन,मैं गुनगुनाता हूं पर गायक हो नहीं सकता।
मैं एक पन्ना हूं और तुम लिखती हो किताबें तुम रख सकती हो मुझे,पर हर पन्ना भरा हो नहीं सकता
मंजिल है तू रास्ता तेरा खूबसूरत है बड़ा प्यारा है
तू कहती है तो चल दूंगा पर ,दूर है मेरा घर
मैं तेरा मेहमान हो नहीं सकता ।
गम है तेरे पास तो वह भी बांट ले,वो भी चखना हे मुझे
तू सब कुछ छुपा ले ,पर मेरा दिल चुप हो नहीं सकता ।
तुझसे प्यार है तू देखती है सबकी खुशी
तू चाहे तो तेरे साथ रो लूं ,पर मैं तेरा “हर्ष” हो नहीं सकता ।
हर्ष मालवीय
बीकॉम कंप्यूटर द्वितीय वर्ष
शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य
महाविद्यालय