बेबस देश
संकट के दौर में सभी देश औंधे मुँह लुढ़के पड़े हैं,
कहीं डॉलर, कहीं पौंड, कही दिनार बिखरे पड़े हैं।
कभी जिनका चलता था सिक्का दुनिया जहां में,
आज वही बेबस,बेसहारा हुए दूसरों को ताकते हैं।
झंडा जिनका कभी झुका नहीं, ऐसे सत्ता धारी थे,
बुँलदी की ऊँचाई से सबको एक ही हाँका करते थे।
आज वही,भूल अपनी हेकड़ी, हाथ बड़ा गिड़गिड़ा रहे।
मानों प्रकृति अब उनको जैसो को तैसा ही चिड़ा रही।
कोरोना ने सबको इस बंजर धरती पर ला खड़ा किया।
मानों यह सबको सबक सिखा के यह चैता रही हो
अभी भी छोड़ दो ताकतवर, झूठा दंभ महान बनने का।
मैं ही कर्ता धरता हूँ, मैं ही तुम सबकी जननी धरती हूँ।