बेपरवाह
बेपरवाह
वक्त की लगी ठोकर के दर्द से निकली आह है ।
एहसान फरामोशो में अपनों की कहां चाह है।।
अपना-अपना करते अपनों से ही छिटक गए ।
समय को नहीं समझे समय से ही बेपरवाह है ।।
– ओमप्रकाश भार्गव ,
बेपरवाह
वक्त की लगी ठोकर के दर्द से निकली आह है ।
एहसान फरामोशो में अपनों की कहां चाह है।।
अपना-अपना करते अपनों से ही छिटक गए ।
समय को नहीं समझे समय से ही बेपरवाह है ।।
– ओमप्रकाश भार्गव ,