बेपरवाह जिंदगी की
ठहरी हुई निगाहें तेरी जब पत्थर सी हो जाती हैं,
मैं जोड़ता हूँ चाहतों की कड़ियाँ ।।
अश्क तेरे जब प्रेम रवानी से हो जाते हैं ,
मैं छोड़ता हूँ नफरतों की लड़ियाँ ।।
इन कड़ियों मे और इन लड़ियों मे जोर ना मेरा है ,
ना जोर कुछ तेरा है ।।
कश्क है कुछ,कुछ तिलमिलाहट है ,
बेपरवाह जिंदगी की ।।