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21 Mar 2022 · 1 min read

बेनाम राहें

उम्र भर भटकना पडता है बेनाम राहों पर ,
तब कहीं जाकर मिलती है रहगुज़र ।
सीना पडता है चाक -दामन अपने ही ज़ख्मों से ,
तभी जाकर होता है आहों में असर ।
मंजिल की तलब है तो काँटों से क्या डरना ,
अपना खून-ऐ-जिगर दिखलायेगा डगर ।

Language: Hindi
1 Like · 178 Views
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