बेदर्दी मौसम दर्द क्या जाने ?
बेदर्दी मौसम दर्द क्या जाने ?
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मौसम है अनजान
रास्ता है सुनसान
बर्फीली बयार बह रही
संय संय नाद हो रही
घन घन-घनाअम्बर से
गद गद पानी बरस रही
टिप टिप बूंदें टपक रही
नग तल श्वेत श्रृंगार की
चांदी की वसन चमक
मनभावन छटा बिखेर
सप्तरंगी इंद्रधनुष जन
सौन्दर्य उर्जा बढ़ा रही
गाछी डाली गले लिपट
दारुन कथा सुना रही
वेदर्दी मौसम की हुंकार
से रुक्ष रूह काँप रही
खून जम जीवनथम गई
भू गर्भ को ठिठुरा रही
मोटे वसन वदन पर
वर्फ फुहार वसन पर
सूखी रोटी मिली नहीं
पेट पीठ का पता नहीं
जठरानल आग उगल
दिमागी बत्ती बुझ रही
संय संय स्वर गूंज रही
तरु शाखीय भू छू रही
दम्भी दीर्घ रुक्ष डाली
झुक झुक भू स्पर्श से
निज अहंकार तोड़ रही
कमर मरोड़ चुभन दर्द
बेचैनी महसूस कर रही
चेहरा उग्र है मौसम का
नयन वर्फीली आगों से
दावानल को बुझा रही
झूम रही गाछी शाखी
डोल रही डाली पाती
टूट गया तो बिछुड़ गया
बिछुड़ा कहां मिलता है
चकना चूर हो जाता है
बेदर्दी मौसम दर्दहीन हो
वादी भर रहा जख्मों से
औषधहीन जलाजल में
हृदयी धड़कन रक्तचाप
बढा प्राण पखेरू उड़ा रही
बर्फीली तूफां भू सागर का
एवलान्स फेलिकन विविध
नामों से पहचान बना रही
धरती को रौंद आंखों में
पानी तन पर गाद परत
पसार रोने चिल्हाने छोड़
मौसम करबट बदलता है
अर्थ व्यवस्था की कमजोरी
विकास पटरी से उतार नाम
इतिहास दर्ज करा जाता है
पर्यावरण संरक्षण का एक
अमूल्य संदेश दे जाता है
हाय रे हाय ये मौसम दर्द
क्या जाने ये बेदर्दी कह
जन जख्मों पर संतोषी
दवा लगा नूतन शुरुआत
में निज उर्जा लगा देता है
नई विकास व्यवस्था को
पुनः पटरी पर ले आता है ।
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तारकेश्वर प्रसाद तरूण