बेताब ऑखो की ख्वाहिशें
बेताब ऑखो की ख्वाहिशें अब
मरने लगी है,
रूह का तिनका टूट-टूट कर
झरने लगी है।
दर्द-ए-दिल की दास्तान जो
दफ्न थी दिल मेें,
खुश्क हवाओं की चोट से फिर
सुबकने लगी है।
जिन खुशियों को हमने अपनी
खूं से खरीदा था,
बीते वक्त की रेत पर फिर से
बिखरने लगी है।
-के. के. राजीव