बेटी
बेटी
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मां की कोख में जब पली
तब से मेरी पहचान किया,
बेटा – बेटी में भेद करी
फिर कोख में ही मुझे दफन किया,
इसलिए कि बेटी हूं ………।
ना सोचा ना समझा
गर्दन पे तलवार चली
करू क्या शिकवा जग से मैं
कोख (मां) ने भी ना प्रतिकार किया
इसलिए की बेटी हूं ……….।
क्रंदन करती विवश वो होगी
स्याह मुख हृदय ने चीत्कार किया
सुख गई नदी हृदय की
मां के आंचल को ही कफ़न किया
इसलिए कि बेटी हूं……………।
कुत्सित समाज की प्रथा निराली
कोख गिरा कर पितृ ने
ना तनिक सीत्कार किया
आंधी चली अन्तर्मन में
सबको चाहत बेटे की
सोच ना बदली आज भी जिनकी
मुझको क्यूं दुत्कार दिया
इसलिए कि बेटी हूं….…….. ।
“”””””””” सत्येन्द्र प्रसाद साह( सत्येन्द्र बिहारी )””””””””””