बेटी
दोहा – बालिका
कोख से न मार बेटी,होती कुल की लाज।
संस्कार होती बेटी,देती दिव्य समाज।।
मन कर्म से होती शुद्ध,दिल से धैर्य धरती।
पीछे नहीं हटती वे,नित सफलता मिलती।।
छोड़ जाती हैं माँ को,बन जाती ऒ दुल्हन।
करे सम्मान दो कुल की,भगे दुःख के गरहन।।
बेटी जा पिया के घर ,गुड़िया नहीं रोना ।
सजा उस घरोंदे को,साफ सुथरा रखना।।
~~~~~~~~~~~~~~~~
रचनाकार-डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना,बलौदाबाजार (छ.ग.)
मो. 8120587822