बेटी
बेटी
पथिक हूँ मैं राहों की ,पर चुभन हूँ निग़ाहों की।
हूँ मैं कुदरत की सबसे नाज़ुक ,सबसे अनमोल रचना।
आँगन की फ़ुदकती सी चिड़िया, माँ पापा की सारी दुनिया।
बेटों से बढ़ के दिखाऊंगी मै, माँ पापा क सहारा बन जाऊंगी मै।
मुझमें कोई अदभुत है ताक़त, दो-दो आंगन को है मेरी चाहत।
साजन का घर भी सजाती हूँ मैं, माँ बाप को छोर दुलहन मैं बन जाती हूँ।
बदलते रिश्ते निभाती हूँ ,पर पिहर को दिल में बसाती हूँ।
पापा की तसवीर हूँ मैं ,अगले कल की तक़दीर हूँ मैं।
साया हूँ मैं माँ की ,मूरत हूँ ममता की।
तकलीफ़ें खुद में बसाती हूँ ,पर दुनिया को हँस के दिखती हूँ।
प्रकृति का अस्तित्व है मुझमें, जग पे ममता बरसाती हूँ।
मुझको खोना कई रिश्ते खोना, फिर भी गवारा नहीं क्यू मेरा होना?
दहेज के आग में जलाई जाती हूँ,कई बार तो दुनिया भी ना देख पाती
हूँ।
ऐक बेटी को भी को भी है बेटे की चाहत,क्या इतनी बुरी है मेरी खिलखिलाहट?
दुनिया ने बस बेटा ही चाहा,उसने कभी न मुझे सराहा।
फिर भी प्यार लुटाती हूँ मैं,उस बेटे का घर भी बसाती हूँ मैं।
इतनी शिकायत अगर जो मुझसे रखोगे, तो एक दिन माँ किसको कहोगे???
द्वारा
अनन्या जमैयार
पटना
बिहार