बेटी
बेटी पर कविता
सदियां बीत गई ,युग बदल गये ,,
फिर भी कोई न समझ पाये ,,,
बेटी ही कल है ,बेटों से बढ़कर भाग्य जगमगाये।
बेटी कोई बोझ नही है इस बात को कोन समझे यारो ,,,
वो तो एक नन्ही कली है इसे कोख में मत मारो ।
किसने यह जगत रीत की ऐसी सोच बनाई ?
बेटों से वंश चलता ,बेटी होती पराइ।।
केवल जिम्मदारी नही है बेटी ,,यह तो वंशज की जागीरी ,,,
किस्मत वालो की मिलती है बेटी की ताबीरी ।
बेटी ,पिता के नयनो की ज्योति ,सपनो की अंतर ज्य्यति,,
वो तो घर में खरपतवार उखाड़कर सुख ,दया ,धन के बीज बोती ।
बेटी घर आंगन के मध्य शुद्ध हवा की तुलसी ,,
वहः थाली में जगमगाती पूजा की धुप कलसी ।।
बेटी सृष्टि ,शक्ति ,जगदम्बा ,और परम् विश्वास है ,,
यह सुख शान्ति की घर में उल्लास है ।
बेटी संगीत में सुऱ ताल की मधुर राग है ,,
भजन ,गीत में अनुनय ,विनय ,अनुराग है ।।
बेटी माँ बापः का स्नेह वंदन है,,,
यह प्रिय भाई के ललाट का चंदन है ।
बेटी सुख सम्रद्धि ,शांति सिद्धि,देहरी द्वारे दीप जलाती है ,,
नजरे मत चुराओ बेटी से यारो,
घर में तम को हरकर उजाला लाती है ।
अब भी जागो , सुऱ में रागों, भारत माँ की संतानों ,
बिन बेटी से किससे ब्याह कराओगे ।
राधा न होती तो कन्हैया कहा वंशी बजाते ,,
कौशल्या माँ न होती धरा पर राम कहा से आते ।।
बहन न होती ,तिलक न होता किससे वीर कहलाते ,,
सर पल्ले का आँचल न होता , माँ का दूध लजाते।।।।
बेटी जैसा फूल आज तक विधाता न रच पाये ,,
बेटी है तो बेटों से बढ़कर बेटी भाग्य जगाये ।
बेटी से बेटी होती तो जननी कह लाती ,,
इसी नियम से सन्सार बनता सृष्टि चक्र कहलाती ।
✍✍✍✍प्रवीण शर्मा ताल
जिला रतलाम
स्वरचित कॉपिराइट कविता
टी एल एम् ग्रुप संचालक
दिनाक 10/4/2018
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