बेटी
“बेटी”
मैं नही चाहती कि
मेरे देश की किसी बेटी में अकारण भरा हुआ अभिमान हो।
चाहती हूँ कि हर बेटी में पूरीतरह भरा हुआ स्वाभिमान हो।।
मैं
नही चाहती कि कोई बेटी कभी बेवक्त घूंट जहर के पिये।
चाहती हूं कि हर बेटी बस सिर दुनिया में ऊंचा करके जिये।।
मैं
नही चाहती कि कोई बेटी शीतल जल की अविरल धारा हो।
चाहती हूं कि हर बेटी धधकती आग का जलता अंगारा हो।।
मैं
नही चाहती कि कोई बेटी अबला बनके इज्जत लुटा आये।
चाहती हूं कि हर बेटी उस दरिंदे का शीश काट झुका आये।|
“मलिक”
नही चाहती कि कोई बेटी किसी पुरुष की बंधुआ बनकर चीखे।
हर बेटी “सुषमा” की तरह अपने हक के लिए लड़ना सीखे।।
सुषमा मलिक,
रोहतक
महिला प्रदेशाध्यक्ष