बेटी
मुक्तक
बनी टी टी चली है रेल में भी बेटियां अब तो।
सिपाही बन खड़ी है जेल में भी बेटियां अब तो।।
धरा को चूमकर माटी वतन की सिर लगाकरके,
दिलाती ढेर मेडल खेल में भी बेटियां अब तो।।
गीतिका
गगन में अब गमन करने लगी है आज तो बेटी।
पवन के वेग से चलने लगी है आज तो बेटी।।
किसी भी ओर से कमजोर है वो तुम नहीं मानों,
समर में कूदकर लड़ने लगी है आज तो बेटी।।
नजर के सामने मंजिल लिए अपनी खड़ी है वो,
अरे अब डूबकर पढ़ने लगी है आज तो बेटी।।
उसे पाना इरादा है सितारों की बुलन्दी को,
खुदी खुद से खुदा गढ़ने लगी है आज तो बेटी।।
हुई लक्ष्मी, अवंती, कल्पना, इंद्रा, सभी बेटी,
वतन के नाम तन कहने लगी है आज तो बेटी।।
किसी से कम नहीं मानों ‘सरल’ इन बेटियों को तुम,
पहाड़ी भी खड़ी चढ़ने लगी है आज तो बेटी।।
साहेबलाल “सरल”