बेटी
बात हंसकर कभी गैरत की ना टालो बेटी।
अब दरिंदो के लिए खुद को संभालो बेटी।
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पाक दामन को बचाने के लिए खुद ही उठो।
फब्तियों वाली ज़ुबां काट ही डालो बेटी।
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भेड़िए भूखे नज़र आते हैं वहशत वाले।
इनसे निमटो की अब हथियार उठा लो बेटी।
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तुम ही दस्तार हो, मां बाप की गै़रत तुम हो।
फातिमा ज़हरा के किरदार में ढालो बेटी।
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अब चमन में कोई तितली का कहीं पर नोचे।
मौत का उसके फिर फरमान बना लो बेटी।
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नस्ल दर नस्ल हया की तेरे कसमें खाएं।
ऐसे किरदार से दामन को सजा लो बेटी।
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बेटियां अब किसी मैदान में पीछे भी नहीं।
“सगीर” बेटों की तरह शान से पालो बेटी।*