बेटी (ग़ज़ल)
बेटी नाजुक होती है पलकों पे पलनी चाहिए
बूँद आँसू की नहीं इनमें मचलनी चाहिए
दो कुलों का मान रखती बेटियाँ ही हैं यहाँ
हर दुआ इनके लिये दिल से निकलनी चाहिए
जब बदलते जा रहे हैं वक़्त के ही साथ हम
बेटियाँ हैं बोझ फिर ये बात खलनी चाहिए
बेटियों भी चाहती हैं पानाअपना ही गगन
अब हमारी सोच उनके साथ चलनी चाहिए
मानते हो बेटियों को देवियों सा तुम अगर
तो न कोई कोख में अब यूँ कुचलनी चाहिए
बेटियाँ सुन ‘अर्चना’होती पराया धन नहीं
रीत है ये तो पुरानी अब बदलनी चाहिए
12-12-2017
डॉ अर्चना गुप्ता