*बेटी होती नहीं पराई …*
बेटी होती नहीं पराई ।
पराई कर दी जाती है ।।
पाल पोसकर जब की बड़ी ।
कहकर पराई क्यूँ विदा कर दी जाती है ।।
बेटी होती नहीं पराई ।
पराई कर दी जाती है ।।
जिस घर आँगन बेटी खेली कूदी ।
उस घर आँगन को ना चाहकर भी छोड़ जाती है ।।
बेटी होती नहीं पराई ।
पराई कर दी जाती है ।।
जिस मायके में जान बसती है बेटी की ।
शादी के बाद उसी मायके में पराई कर दी जाती है ।।
बेटी होती नहीं पराई ।
पराई कर दी जाती है ।।
आ जाती अनचाही कोई मुशिबत जब बेटी पर ।
कहकर पराए घर की बात ससुराल पर छोड़ दी जाती है ।।
बेटी होती नहीं पराई ।
पराई कर दी जाती है ।।
अहसास अपनेपन का नहीं बदलता बेटी के मन में ।
पर जाने क्यों मायके वालों को बेटी अब पराई सी लगती है ।।
बेटी होती नहीं पराई ।
पराई कर दी जाती है ।।
जीना चाहती है बेटी फिर से मायके की हर खट्टी मिट्टी याद को ।
पर चाहने से हर मुराद पूरी कहाँ होती है ।।
बेटी होती नहीं पराई ।
पराई कर दी जाती है ।।
बेटी अब भी जाती है मायके पर अब खुशबू वो नहीं आती ।
जो अपनेपन की खुशबू शादी के पहले आया करती थी ।।
बेटी होती नहीं पराई ।
पराई कर दी जाती है ।।
बिना काम बेटी की याद भी अब किसी को आती नहीं ।
बेटी भी अब बिना वजह जब चाहे मायके जाती नहीं ।।
बेटी होती नहीं पराई ।
पराई कर दी जाती है ।।
बेटी भी अब मायके के मोह को छोड़ देना चाहती है ।
अपने नन्हे मुन्नों की खूबसूरत दुनिया में डूब जाना चाहती है ।।
बेटी होती नहीं पराई ।
पराई कर दी जाती है ।।