बेटी है अनमोल धरोहर
बेटी है अनमोल धरोहर
सामाजिक बंधनों में जकड़कर व्यक्ति रूढ़िवादिता की लकीर को छोड़ ही नहीं पाता । वह मन में यह इच्छा लिए रहता है कि उसका बेटा उसका वारिस बनकर देश व समाज ने उसका नाम उच्चाँ करेगा । समाज में आज भी बेटों की चाह खत्म नहीं हुई है, चाहे परिवार में दो बेटियां पहले से ही क्यों न हो । बेटी को पराया धन समझकर माता पिता उसे कई सुख सुविधाओं से वंचित रख देते हैं । उसे जन्मदिन जैसे विशेष अवसरों पर भी केवल खुश रहो जैसे आशीर्वाद देकर सन्तुष्ट कर दिया जाता है । दूसरी ओर हम उम्र बेटे के लिए एक नई साइकिल व कई महंगे खिलौने लाए जाते हैं । बेटे के जन्मदिन की खुशियां अक्षर ढोल पीट कर व प्रीतिभोज खिलाकर भी मनाई जाती है । सीधे शब्दों में यह दर्शाया जाता है कि बेटा वंश का गौरव व सम्मान है। बेटियों का प्रेम तो देखिये की वो अधिकतर सुख सुविधाओं से वंचित रह कर भी अपने माता पिता की सेवा में लगी रहती है।
बेटी ने घर के साथ-साथ, देश बखूबी चलाया है।
माता पिता और राष्ट्र का, गौरव उसने बढ़ाया है।
ग्रहणी से लेकर राष्ट्रपति तक, जिम्मेदारी खूब निभाई है।
हर क्षेत्र में उसने क्या खूब प्रतिष्ठा पाई है।
फिर भी मार दिया जाता गर्भ में, उस नन्ही सी जान को।
शर्म नहीं आती ऐसे, अंध विश्वासी व मूर्ख इंसान को।
बेटी बचाओ जागरूकता, देश भर में हम फैलाएंगे ।
बेटी का पिता कहलाकर अपना सिर ऊंचा उठाएंगे ।
मेरी छोटी सी कविता के माध्यम से भी मैंने उन सभी नागरिकों को एक संदेश देने का प्रयास किया हैं जो बेटी को बोझ समझकर उससे ईर्ष्या की भावना रखते हैं ।आज समाचार पत्र में यह पढ़कर अत्यंत हर्ष हुआ की देश की सर्वोच्च अदालत में देश की बेटी का न्यायाधीश के रूप में चयन हुआ। यह भारतीय बेटियों व महिलाओं के लिए सम्मान की बात है । व्यक्ति को अपनी मानसिकता में बदलाव करके अपनी बेटियों को भी बेटों के बराबर शिक्षा व अन्य सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए । जिससे वह अनपढ़ व अबला नारी न रहकर समाज में शिक्षित, समर्थ एवं आत्मविश्वासी बन सके । भारतीय संसद में बैठे प्रतिनिधि समय की मांग एवं आवश्यकताओं के अनुसार प्राचीन समय में बने रूढ़िवादी कानूनों में धीरे-धीरे सुधार कर रहे हैं । यह बेटियों के अधिकारों के प्रति एक सकारात्मक पहल है । सरकार द्वारा लिंग जांच और भ्रूण हत्या जैसे कानूनों को और अधिक कठोर बनाकर बेटियों के प्रति नकारात्मक सोच रखने वाले लोगों को दंडित करना चाहिए । सबसे जरूरी है देश में सामाजिक जागरूकता की क्योंकि कोई भी नियम जागरूकता के अभाव में पूरी तरह लागू नहीं हो पाता । मेरा मानना है कि जन प्रतिनिधियों के साथ-साथ जागरूक नागरिकों का भी यह दायित्व बनता है कि वो अपने लोकगीतों ,लघु नाटिकाओं, दृश्य चित्रों ,जागरूकता शिविर व लेखनी के माध्यम से इस दिशा में अथक प्रयास करें । जिससे बेटी को भी बेटे के बराबर सम्मान मिल सके। देश का सजग नागरिक होने के नाते यह मेरा एक छोटा सा प्रयास है । मेरी बेटी, मेरा मान, व मेरा सम्मान ।