बेटी समझती है दर्द
बेटी डांटती है
अच्छा लगता है
वह कहती है :
” पापा आप दवाई
समय से क्यो
नहीं खाते ?
खाना समय से
खाया करो प्लीज
सुबह शाम
घुमने जाया करो
सेव काजू
खाया करो
सेहत का ध्यान
रखा करो
और हाँ दादा भाभी
का ध्यान रखना
मैं तो अब पराई सी हूँ न ”
उसकी यही सब बातें तो
मन को भाती हैं
क्यो कि
वह नि:स्वार्थ होती है
बेटा कहता है
” पापा आप बहुत
फिजूलखर्ची हो गये हो
अब इस उम्र में
काजू बादाम की
क्या जरूरत है
बस आप तो
खिचडी खाया करो
मकान बेचने के
कागजात तैयार हैं
आप ने साईन
अब तक नही किये
पेन्शन निकाल कर
लाईये तभी
तो खर्च चलेगा
वसीयत करवा ली
जल्दी दस्तखत
कर दीजिए
जिन्दगी का क्या भरोसा
बाद में दिक्कत होगी ”
बेटे की बातें
दिल तोड़तीं है
जबकि बेटी की
दिल जोडतीं हैं
स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल