बेटी… सिर्फ़ शब्द नहीं संसार है
बेटी … सिर्फ़ शब्द नहीं संसार है
आज तो चारों सड़क छाप आवारा लड़कों ने हद ही कर दी रोज़-रोज़ ऐसे कैसे चलेगा । मेरा तो आने-जाने का एक वही रास्ता है… सोचते हुए सोनाली अपनी बिल्डिंग की सीढ़ियां चढ़ ही रही थी यकायक उसका दुपट्टा सीढ़ियों पर अटक जाता है । सोनाली थोड़ा थमती है… डरते हुए पीछे देखती है… कोई नहीं है । जल्दी से रेलिंग से दुपट्टा छुड़ाया और सीधा अपने माले की ओर बिना रुके चढ़ती चली गई । कमरे का दरवाजा खोला और झट से बंद कर दिया । मां को याद करते हुए आने वाले कल के बारे में सोच रही है । किसी को कैसे कहे , कोई भी तो नहीं है इस अनजान शहर में अपना कहने के लिए । गांव में तो सभी एक दूसरे के सुख-दुख , हारी परेशानी साथ में रहते हैं । यह शहर है , यहां ऐसा नहीं है । यहां तो सभी …चाहे वह अपना है या अनजाना मजबूरी का फायदा उठाते हैं, मजाक उड़ाते हैं या डराते हैं । हौसला कोई नहीं बढ़ाता और न ही कोई मुसीबत में साथ देता है । सोनाली को मुंबई आए अभी सिर्फ़ 6 महीने ही हुए हैं । नौकरी से जो मिलता है उससे कॉलेज की फीस भर देती है और कुछ मां के पास गांव भेज देती है… घर में सबसे बड़ी जो है । दो छोटी बहनें हैं जो मां के साथ ही गांव में रहती हैं । बापू थोड़ा-सा खेती का टुकड़ा छोड़कर गए हैं । उनको परलोक सिधारे अभी एक ही साल हुआ है तब से घर की जिम्मेदारी मां और सोनाली दोनों ही उठाती हैं ।
अगले दिन ऑफिस में नंदिनी… सोनाली क्या सोच रही हो? कल भी तुम ऐसे ही खामोश बैठी थी । तुम्हारा कई दिनों से काम में भी मन नहीं लग रहा कोई परेशानी है तो बताओ । 7:00 भी बज गए हैं ऑफिस बंद होने का टाइम हो चला है । चलो साथ ही निकलते हैं । दोनों ऑफिस से बाहर साथ निकलती हैं । नंदिनी सोनाली से विदा लेते हुए… ठीक है सोनाली कल मिलते हैं ध्यान से जाना । सोनाली … आज न मिले वह चारों सड़क छाप । घबराहट तो हो रही है । डर भी लग रहा है । मुंबई है न किसी को मार भी दो तो पता भी न चले । मां ने बताया भी था कि शहरों का माहौल अच्छा नहीं होता और खासकर सर्दियों में तो 8 बजे से ही शहर की सड़कें सूनी हो जाती हैं सोचते हुए सोनाली अपनी ही धुन में चल रही है उसे पता ही नहीं चला कि कब उन चारों आवारा लड़कों ने उसका पीछा करना शुरू कर दिया । उसे कुछ आवाज सुनाई देती है पीछे मुड़कर जैसे ही देखती है तो चारों उसके बिल्कुल पीछे थे । वह सहमी – सी वही रुक जाती है । उसके होश हवास उड़
जाते हैं । वह लंबी – लंबी सांस लेने लगती हैं । चारों ओर अंधेरा है, सुनी सड़क है । चारों लड़के उसके नजदीक आते हैं और उसको घेरकर उसके आगे – पीछे चक्कर लगाने लगते हैं । कोई उसका दुपट्टा पकड़ता है तो कोई कुर्ती । आज तो मैडम जी का नाम पता करके ही रहेंगे । एक लड़का उसका दुपट्टा पकड़ कर… क्या मैडम जी, ज़रा बता दो न… नाम ही तो पूछ रहे हैं इतने दिन हो गए । कब तक तड़पाओगी । सोनाली घबराई हुई वहीं सड़क पर नीचे बैठ जाती है । चारों लड़के उसके चारों तरफ घूमते हुए कुछ भी अनाप-शनाप बोल रहे हैं । मैडम जी नाम बताओ , नाम क्या है , नाम ही तो पूछा है । सोनाली हिम्मत करते हुए उठती है । सभी चक्कर लगाना छोड़ देते हैं । सोनाली नीचे मुंह किए सिकुड़ी – सी, सहमी – सी खड़ी है । हां जी मैडम जी , नाम क्या है ? बता दो ज़रा । कहां से आई हो, कहां जाना है हम छोड़ देते हैं मगर …पहले नाम पता करना है । सोनाली कुछ सोचती है उनमें से एक लड़के के नजदीक जाती है और कान में कहती है… बेटी । दूसरे के नजदीक जाती है कान में कहती है …मां । तीसरे के नजदीक जाती है और उसके भी कान में कहती है… बहन । जैसे ही चौथे लड़के के नजदीक जाने लगती हैं वह अपने कदम पीछे हटा लेता है । सोनाली उन चारों को देखती है और अपने कदम बड़ी निडरता से आगे बढ़ाती हुई अपनी मंज़िल की ओर चल पड़ती है ।
इस कहानी के माध्यम से मैं समाज के उन पंगु मानसिकता वाले लोगों को जो नारी का सम्मान नहीं करते यही संदेश देना चाहूंगी कि मां, बेटी और बहन इन शब्दों में असीम शक्ति है । इन शब्दों की शक्ति की सार्थकता को समझो । नारी सृष्टि को जन्म देती है, सभ्यता को पालती है, संस्कारों को पोषित करती है । नारी ही मां, बेटी, बहन, बहू के रूप में इस संसार को चलती है । बेटी शब्द में पूरा संसार छिपा है । बेटी शब्द नहीं पूरा संसार है ।
बेटियों का सम्मान करो ।
धन्यवाद