बेटी मॉ की है परछाई
**बेटी मां की है परछाईं**
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बेटी मारके से चली आई,
ससुराल में आ कर समा्ई,
दो घरों से वो आने वाली,
होती हर घर में बेटी पराई।
बिन बेटी के हर घर अधूरा,
बेटी से होता है हर घर पूरा,
मां-बेटी का रिश्ता है प्यारा,
समझ पाये न कोई गहराई।
रौनक बेकी है बाबुल घर की,
पगड़ी होती बाप के सिर की,
फूलों जैसे है पाला जिस को,
निज हाथों से देता है विदाई।
बिना बोले मां समझ जाए,
दुःख दिलों के है जान जाए,
कैसी भी हो बिटिया प्यारी,
बेटी मां की होती है परछाईं।
बेटी से ही हर रिश्ता है बनता,
बेटी से ही हर घर है बसता,
बेटी के ही कारण है बजती,
जगत में घर – घर में शहनाई।
मोतियों की माला सी है बेटी,
कब समझेंगे हम बहू को बेटी,
बेटों को मानते हैं घर का हीरा,
बेटी को क्यों मिलती रुसवाई।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)