बेटी भी बेटे भी सब एक समान
*बेटी बचाओं..बेटी पढ़ाओं,
पर बेटों को भी तो संभालों,
अब तक बेटे थे गर्त पर,
अब बेटी लग गई शर्त पर,
कौन है जिम्मेदार,
उनका भी तो पता लगाओं,
थोथे गाल मत बजाओं,
घर-परिवार,समाज से खोज लाओं,
आज क्यों पड़ी जरूरत नारे की
..जाओ कारक खोज लाओ,
नहीं तो आज नहीं तो कल जरूरत पड़ने वाली है नारे की,
बेटी से तो बेटा अच्छा,
निष्कर्ष:-
आज भी समाज दोषी है,
भविष्य में उसे ही सुननी पड़ेगी,
बेटी हो या बेटा घर में समान भाव से परवरिश हो,
फिर चाहे लड़की हो लड़का फर्क नहीं पड़ता,
हो सके तो जागृति फैलाओं,
मत युवा वर्ग में भेदभाव की खाहि बनाओं,
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मेरे निजि विचार,
डॉ महेन्द्र सिंह खालेटिया,
रेवाड़ी(हरियाणा).