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22 Apr 2019 · 2 min read

बेटी ने सिखाया बचत का सफर

लघुकथा दिनांक 22/4/19

” संध्या की विदाई हो गयी थी , आँखो से आंसू रूक नहीं रहे थे । घर में सन्नाटा हो गया था ” ,
नहीं तो :
” पापा आप लाईट बंद करने का ध्यान नही रखते देखिए आप रमेश अंकल के आने पर बैठक में थे और पंखा खुला छोड़ दिया , अब तक कितनी लाईट बेकार जली ।”
तब मैं उससे बोलता :
” हाँ गलति हो गयी अब आगे से ध्यान रखूगा ।”
इसी तरह संध्या अपनी माँ को गैस फालतू नहीं
जलाने , भाई को पेट्रोल बचाने भाभी को नल बंद करने के लिए कहते कहते पूरे घर का काम भी दौड़ते भागते करती , इससे घर में चहल पहल भी बनी
रहती थी ।
कई बार घर के लोग संध्या के व्यवहार से चिढ़ भी जाते थे ।
आफिस के काम से कानपुर आना हुआ तो संध्या के घर भी गया । वहाँ भी संध्या सबसे हिलमिल गयी थी और दौडते भागते , कभी किसी को लाईट बंद करने, तो किसी को नल बंद करने के लिए कहा रही थी ।
मुझे देख कर वह गले लग गयी , तभी समधी रामलाल जी आ गये । संध्या चाय बनाने चली गयी ।
मैंने कहा :
” भाईसाहब संध्या बच्ची है उसकी बातों का बुरा मत मानना , वहाँ भी फिजूल खर्ची पर सबको टोका करती थी ।”
तभी समधिन जी भी आ गयी और बोली :
” भाईसाहब आपने बच्ची को बहुत अच्छे संस्कार दिए है उसके आने से पहले हमारे यहाँ लाईट,पानी, गैस और भी चीजों की बर्बादी होती रहती थी , लेकिन संध्या ने सब पर लगाम लगा दिया है , शुरू शुरू में बुरा जरूर लगा लेकिन बिजली , पानी बिल में बचत हुई है , गैस ज्यादा चलने लगी है ।”
तभी संध्या चाय बना कर ले आई ।
समधी जी के घर से निकलते समय मुझे सुकून
था कि :
” बेटी ने अपना और मेरा नाम यहाँ भी गिरने नहीं दिया उसके लिए तो दोनों घर समान हैं पहले मायके में बचत का पाठ पढाया और अब ससुराल में भी वही कर रही है ।”

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव

Language: Hindi
314 Views
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