बेटी घर की इज्ज़त
नारी विभिन्न रूपों में आज भी,
आश्रिता ,भोग्या, वस्तु,समान , आज भी बोझ है।
सब तरह की सोच है,
जब,
कहती हैं माँ शर्मिंदा हूँ।
कहते है पिता नाक कटवा दी।
कहता है भाई बेइज्जती करा दी ।
जो तुमने भाग कर शादी कर ली ।
अब नाता नहीं तुझसे ।
और जब शादी माँ – बाँप,भाई,बहन के सहमति से होता है तब भी अगर किसी कारण शादी तुट- छुट जाते है ।
तब इज्जत , खुशी, जिंदगी सब कुछ दांव पर।
सब साख टूटने लगते हैं ।
वही माँ – बाँप भी बुढ़े होने लगते हैं।
माँ-बाँप को खुद सहारा चाहिए।
भाई को प्यार (पत्नी ) चाहिए I
बोलो मेरी जिंदगी कहाँ ,बको मेरी इज्जत कहाँ
कैसे जीएगे तमाम उम्र
कम से कम हुनर तो सीखा देते,भाई के तरह
लड़का चाहें जैसा हो उसे हर हाल में ये माँ – बाँप सिखाना चाहते ,वहीं बेटी को … ? सब जानते है।
जो पैसे थे वो दहेज ,भाई की पढ़ाई पर खर्च कर बैठे।
मैं तो इज्जत हूँ ना
यूँ ही जीवन मेरी दाँव पर लगा बैठे ।
फिर भाग्य ही न.. होने का तगमा लगा देते है।
सुकोमलता , विश्वास, अपनापन का भ्रम जब -तक
महिला पालेगी , अपनीआत्मा , हकीकत में यूं ही छली जाएगी।
कितनी बर्बादी
नारी की आबादी
सहेगी हमेशा
कथित साधु संत
नारी से ही पैदा लेते
करते हैं नारी अपमान
क्यों ना राजा राममोहन राय बन जाते।
अपने को श्रेष्ठ घोषित करने , माँगते अपना सम्मान ।
मेरी इज्जत कहाँ है राम ।
_ डॉ. सीमा कुमारी , बिहार (भागलपुर)।
स्वरचित मेरी रचना है, ये 28-12-021 की है। जिसे आज मैं प्रकाशित कर रही हूँ ।