बेटी खतरे में है
दिल था आज कलम उठाऊँ कुछ रूमानी लिखूँ
पर बेटी आज खतरे में है कैसे कोई नज्म लिखूं
मेरी बेटी सुरक्षित रहे बस यही चिंता है सबकी
छेड़ा तेरे बेटे ने वो भी तो इज्जत है किसी की
जो हो रहा है उसे देख कर आँखे बंद कर लेना
क्या जायज है अपने जमीर को ये जवाब देना
जिसके साथ रेप हुआ वो मेरी थोड़ी ही ना है
शरीफ लड़की रात को बाहर जाती ही कहाँ है
कितना आसान है पल में चरित्र को गढ़ देना
काम काजी लड़की को यूँ बदचलन कह देना
छोटे कपड़ों से दीखते शरीर का कुसूर बताया
क्या कभी किसी ने नहीं तुम्हे आइना दिखाया
सोच छोटी हो तो कपडे छोटे ही दीखते हैं
बंद गले के सूट पर भी नजरें वहीँ टिकाते हैं
ना तो समय गलत है ना पहनावा ही गलत है
सोच है तेरी जो कल भी थी आज भी गलत है
औरत इंसान है जितने तेरे उतने हक़ हैं उसके
ये एक माँ भी है तू भी तो पैदा हुआ है उसी से
तुझे दीखता नहीं पर जंगल में लगी आग है ये
सभ्यता के समूल विनाश का एक भाग है ये
आज मेरा है नम्बर कल तेरा भी जरूर आएगा
तेरा आज चुप रहना उस दिन तुझे याद आएगा
जाग जा बेखबर इससे पहले कि देर हो जाए
मिट जाए इंसानियत पशुता का राज हो जाए
चल उठ जाग और प्रतिकार कर ले मिलकर
बेटी तेरी भी खतरे में है बचा ले स्वार्थ तजकर
कवि: सतीश चोपड़ा