बेटी के प्रथम पग
ना रोको मुझे
ना टोको मुझे
मेरे कदम उठ गए हैं
अब ना कुछ बोलो मुझे..।
ये जो क्षितिज दिख रहा है
वहाँ तक है जाना है मुझे
सूरज के सतरंगी घोड़े की
सवारी कर लेने दो मुझे..।
इस धूसर जमीन की
निराली काया है धूसर
यही सौंधी गंध लेकर
नई सदी लिख लेने दो मुझे..।
वही दूध माँ का मैंने पिया है
उसी कोख से मैंने जन्म लिया है
पहला निबाला इसी मिट्टी का मैंने भी खाया है
लड़के से ना अब कमतर आंको मुझे..।
अंतरिक्ष में उडूंगी
गहरे समुंदर में खेलूंगी
पर्वतों को पैरों के नीचे दबाकर
नया पूरा इतिहास रच लेने दो मुझे..।
प्रशांत सोलंकी,
नई दिल्ली-07