बेटी की विदाई
अंगुली पकड़ कर हुई थी जो बेटी बड़ी
दूल्हे राजा के साथ वह ससुराल चली चले. (1 )
सखियों के संग इन गलियों में खेल खेले
चली जा रही है देखो सबसे मिलके गले. ( 2 )
बुरी नजरों से बचाया है तुझे तुम्हारी माँ ने
लगाकर काजल हरदम, अपने आंचल के तले. (3 )
मुरझाएं मन को कर देती थी जो पल में हरे
करती थी जो सर्वदा सबकी भले ही भले. ( 4 )
नाजों से, प्यार से जिसे हमने पाला – पोशा
हर जरुरत होती थी पुरी बिन मांगे बिना टले ( 5)
सजी रहे हाथों में मेहंदी की रेखाएं हरदम
कितनी अच्छी लगती है हाथ लाल – पीले . ( 6)
लाल – लाल साड़ी है, लाल गोटेदार चुनड़ी
अमर सुहाग रहे तुम्हारा, सौभाग्य न कोई छले (7 )
दाग न लगाना कभी, किसी के भी दामन में
करना नहीं किसी भी कुल के कभी मुँह काले. (8 )
बेटी को कर दो विदा, जो रहती थी हम पर फ़िदा
जाकर ससुराल रहे खुशहाल हमेशा फुले- फले (9 )
जीत लेना दिल वहां सबसे हिल के – मिल के
रखना नहीं कभी मन में कोई शिकवे – गीले. ( 10 )
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रचना – घनश्याम पोद्दार
मुंगेर