‘बेटी की विदाई’
‘बेटी की विदाई’
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अजीब क्षण,इस विदाई का;
गम है, ‘खुशी’ के जुदाई का;
खुशियां टपकती, आंसू बन;
हल्का होता , अब भारी मन;
हर आंखों में ही , अश्रु आई;
जब होती , ‘बेटी की विदाई’;
अब सूना-सूना, ही घर दिखे;
घर की रौनक जो, हुई पराई;
वक्त होता यह , बड़ा अजूबा;
नहीं है कहीं,बनावटी मंसूबा;
कोई यहां , हॅंसते-हॅंसते रोए;
कोई रोते-रोते ही , हॅंस जाए;
पर , सब निज आंसू छुपाए;
‘बेटी’,रो-रो कर होती बेहाल;
कि कैसे जाए , वो ‘ससुराल’;
हर कोई , उसे ढाढस बंधाते;
कोई, ‘पाहुन’को ही समझाते;
दिखे, ‘माता’ का अकेलापन;
‘पिता’ हॅंसते , छुपा सारे गम;
छोटी बहन भी , बैठी है मौन;
अब उसको , समझाए कौन;
बेचारे ‘भाई’ का, क्या कहना;
कौन , बात सुने अब उसकी;
ससुराल गई , उसकी ‘बहना’।
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स्वरचित सह मौलिक;
…..✍️ पंकज ‘कर्ण’
………….कटिहार।।
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