बेटी की विदाई
हे निष्ठुर निर्मोही ईश्वर मेरे, तूने ये कैसी रीत बनाई,
अपनी थी मैं जिनके लिए, अब हो गई क्यों पराई।
बाबुल तेरे हरी भरी बगिया की, मैं इक कली हूँ,
बड़े ही लाड़ प्यार नाजों से, मैं तेरे गोद में पली हूँ।
मुझे चलना सिखाया, जब गिरी तो तूने ही संभाला,
क्या गुनाह था मेरा, जो तूने दिल से मुझे निकाला।
देकर हाथ इक अजनबी को, तूने कैसी प्रीत निभाई,
बाबुल तेरी प्यारी बिटिया, अब हो गई क्यों पराई।
माँ तूने मुझे जन्म दिया, तेरे दिल का मैं हूँ टुकड़ा,
ममता से किया महरूम, तेरा आँचल क्यों उजड़ा।
मैया कैसे रहेगी तू, मैं जी नहीं पाऊँगी तेरे बिन,
उम्रभर की बात क्या, अब तो रात कटेगी ना दिन।
मैं इक चिड़ी पंख मेरे कोमल, कैसे मुझको उड़ाई,
मैया तेरे कलेजे का टुकड़ा, अब हो गई क्यों पराई।
भैया अपनी मासूम गुड़िया को, कैसे तूने ठुकराया,
साथ पढ़े साथ ही खेले, मुझे त्याग तुम्हें अपनाया।
किसके संग करुँगी जोरा जोरी, किसके संग लड़ाई,
कौन कहेगा प्यारी बहना, अब मैं किसे कहूँगी भाई।
हे निष्ठुर निर्मोही ईश्वर मेरे, तूने ये कैसी रीत बनाई,
अपनी थी मैं जिनके लिए, अब हो गई क्यों पराई।
?? मधुकर ??
(स्वरचित रचना, सर्वाधिकार©® सुरक्षित)
अनिल प्रसाद सिन्हा ‘मधुकर’
ट्यूब्स कॉलोनी बारीडीह,
जमशेदपुर, झारखण्ड।
e-mail: anilpd123@gmail.com